थोडा- थोडा, एक-एक कर दुनिया में क्या छूटते ! पूरी दुनिया के साथ-साथ सब छूटे हुए थे . अनंत से पृथ्वी छूट गयी थी . अनंत से छूटी पृथ्वी का अनंत के बिना काम नहीं चलता होगा . जो दिख रहे होते और जो नहीं दिख रहे होते उन सब के साथ-साथ पृथ्वी छूटी होती . इन सब लोगों के साथ और दूसरे मनुष्यों के साथ मनुष्य का अकेलापन भी था . अपना-अपना अकेलापन . सृष्टी में पृथ्वी का अकेलापन भी होगा . परन्तु एक मनुष्य का अकेलापन सृष्टि के अकेलेपन से भी बड़ा होता होगा .
विनोद कुमार शुक्ल
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