29/6/07

लाओत्ज़ु



कहानी सच नही होती लेकिन वो सच से प्यार करना सिखा सकती है


लाओत्ज़ु चीन के विशाल ग्रंथागार के ग्रंथपाल और सम्राट के मित्र थे । इस पद से मुक्त होने के बाद वो अपने गाँव जाकर एकांत में रहने लगे । सम्राट ने उनसे कोइ भी पद ले कर राज्य की सेवा में बने रहने का आग्रह किया मगर वो विनम्रता से इनकार करते रहे । एक दिन सेनापति उसके पास पहुँचा और सम्राट का आदेश सुनाया के ज़रूरत पड़ने पर उसे सोने की जंजीरों से जकड़कर लाया जाए ताकि उसकी प्रतिभा का राज्यहित में उपयोग हो सके । लाओत्ज़ु ने सेनापति से कहा आओ ज़रा गाँव के तालाब तक चहलकदमी कर आऐं , तालाब के किनारे कीचड़ में कुछ कछुए लोट पोट कर रहे थे ; लाओत्ज़ु ने सेनापति से कहा अगर इन कछुओं से पूछा जाए के तुम चीन का राज चिन्ह बनना पसंद करोगे ? तो इनका जवाब क्या होगा ? उन दिनों चीन का राजचिन्ह स्वर्णमं‍‍िड़त कछुआ हुआ करता था जो सम्राट से भी उपर छत्र पर सज्जित रहता था । सेनापति ने कहा - ये इनकार कर देंगे क्योंकि राजचिन्ह बनने के लिये इन्हे मरना होगा । लाओत्ज़ु ने कहा जाकर सम्राट से निवेदन कर दें , के मुझे कम से कम इन कछुओं जितनी स्वतंत्रता तो दी जाए के मैं भी अपने एकांत के तालाब और सादगी के कीचड़ में लोट पोट कर सकूँ । सम्राट मन मारकर रह गये ।

समय बीता सम्राट खुद ज्ञान चर्चा के लिये लाओत्ज़ु के पास आने लगे और ये आग्रह करते रहे के कम से कम , एक किताब तो लिखनी चाहिये ताकि लाओत्ज़ु के ज्ञान की निधी अगली पी‍िढ़यों तक पहुँच सके , लाओत्ज़ु षडयंत्रपूर्वक टालते रहे । सम्राट का दबाव बढ़ने लगा तो लाओत्ज़ु ने गाँव छोड़ दिया । इसकी खबर लगते ही सम्राट ने चारों ओर सैनिक दौड़ा दिये और आखिरकार लाओत्ज़ु को चीन के आखरी चुँगी नाके पर पकड़ लिया गया , उन्हे सम्राट का आदेश सुनाया गया के वो बिना चुँगी पटाए नही जा सकते । लाओत्ज़ु ने कहा मै कुछ भी नही ले जा रहा हूँ कर किस बात का ? तो सम्राट का जवाब मिला के आजतक इतनी सम्पदा चीन की धरती से कोई नही ले गया जितनी आप ले जा रहे हैं अपनी बुद्धि में सँजोकर ; तो उसका टैक्स पटाने के लिये एक किताब लिखनी होगी ।

लाओत्ज़ु ने उसी चुँगी नाके पर बैठकर एक छोटी सी किताब लिखी ताओ तेह चिंग ( ऋत का गीत ) और जब नाके का अफसर इसे पढ़ ही रहा था तो चुपचाप गायब हो गये । लाओत्ज़ु इसके बाद कहाँ गये किसी को ख़बर नही ,दरअसल लाओत्ज़ु उनका असली नाम भी नही है ; लाओत्ज़ु का अर्थ होता है एक प्रज्ञावान बूढ़ा

ताओ तेह चिंग आज भी उपलब्ध है ।

2 टिप्‍पणियां:

Pratik Pandey ने कहा…

गूढ़ कथा है। बन्धन में राजा होने से कीचड़ में लोटता स्वतंत्र कछुआ होना कहीं बेहतर है। प्रस्तुतीकरण के लिए धन्यवाद।

डॉ महेश सिन्हा ने कहा…

बेहतरीन

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