14/12/08

विर्सजन

ताल पुराना ... कूदा दादुर ..... गुड्प

बाशो ( अनुवाद - अज्ञेय )

( अस्तित्व , चेतना का अनंत ताल है बाशो ने प्रज्ञावान होते हुए जाना के इस ताल में अनगिन बुद्ध समाहित हो चुके हैं ; अब वह भी उनमें से एक है
झूठे चेहरों की भीङ से अचानक एक चेहरा गायब ..... समय की सनातन नदी में एक और मेंढक विलीन )

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